मनुष्य के जीवन में चाहे आन्तरिक शत्रु जैसे काम, क्रोध, लोभ,मोह, अहंकार आदि हों या बाहर के शत्रु हों तो जीवन की गति थम सी जाती है कौड़ी लांघूँ आँगन लांघूँ, कोठी ऊपर महल छवाऊँ,गोरखनाथ सत्य यह भाखै, दुआरिआ पे मैं अलख लगाऊँ शत्रु विघातक मन्त्र ॐ निरंजन निराकार अवगत https://diceh185rtt4.iyublog.com/31489507/details-fiction-and-shabar-mantra